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राजा राम मोहन राय: आधुनिक भारत के जनक

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के राधानगर गांव में हुआ था। उनके पिता रामकांत राय एक ब्राह्मण थे, जो धार्मिक और परंपरागत विचारधारा वाले व्यक्ति थे। परिवार के धार्मिक और संस्कारी माहौल में उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और फारसी में हुई। बाद में, उन्होंने अरबी और अंग्रेजी भी सीखी। अपनी शिक्षा के दौरान उन्होंने विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और अलग-अलग धर्मों के विचारों का विश्लेषण किया। राम मोहन राय का झुकाव हमेशा से ही समाज में सुधार लाने और ज्ञान के प्रसार की ओर रहा, जिसके लिए उन्होंने शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण साधन माना। उनके शुरुआती जीवन और शिक्षा का प्रभाव उनके पूरे जीवन में उनके विचारों और कार्यों में दिखाई दिया।

सामाजिक सुधार और सती प्रथा का विरोध

राजा राम मोहन राय भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध थे। 19वीं सदी में भारत में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय थी, जिसमें सती प्रथा सबसे अधिक अमानवीय थी। सती प्रथा में विधवाओं को उनके पति की चिता में जलाया जाता था, जिसे राजा राम मोहन राय ने न केवल गलत बल्कि क्रूरता पूर्ण माना। उन्होंने इसके खिलाफ जनचेतना जागृत की और इसे समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला। उनकी अथक मेहनत के परिणामस्वरूप 1829 में अंग्रेजों ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया, जिसे भारतीय समाज के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव माना जाता है। यह समाज सुधार के क्षेत्र में उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।

शिक्षा सुधार में योगदान

राजा राम मोहन राय का मानना था कि समाज के विकास के लिए शिक्षा में सुधार आवश्यक है। उन्होंने महसूस किया कि पश्चिमी शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भारतीय समाज को नई दिशा दे सकते हैं। इसी विचार के तहत उन्होंने 1817 में डेविड हेयर के साथ मिलकर हिन्दू कॉलेज की स्थापना में मदद की, जिसे अब प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है। राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी और विज्ञान की पढ़ाई को बढ़ावा दिया ताकि युवा पीढ़ी आधुनिक शिक्षा से जुड़ सके और समाज के विकास में योगदान दे सके। वे भारतीय समाज को परंपरागत सीमाओं से निकालकर एक प्रगतिशील और आधुनिक सोच की ओर ले जाना चाहते थे। उनकी शिक्षा सुधार की सोच ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा दी।

ब्रह्म समाज की स्थापना

1828 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो उनके विचारों और सामाजिक सुधार की प्रतिबद्धता का प्रतीक था। ब्रह्म समाज का उद्देश्य समाज में जाति-पाति, धार्मिक कट्टरता, और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ना था। इस समाज ने एक ऐसा मंच तैयार किया जहाँ लोग बिना किसी धार्मिक विभाजन के समानता और एकता के सिद्धांतों के आधार पर एकजुट हो सकें। ब्रह्म समाज ने ईश्वर की एकता, मूर्ति पूजा का विरोध, और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने का कार्य किया। यह समाज भारतीय धार्मिक और सामाजिक परिदृश्य में एक नया अध्याय था, जिसने आगे चलकर अन्य समाज सुधार आंदोलनों को प्रेरणा दी।

प्रेस स्वतंत्रता और पत्रकारिता में योगदान

राजा राम मोहन राय भारतीय पत्रकारिता के पथप्रदर्शक माने जाते हैं। उन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए पत्रकारिता को एक सशक्त माध्यम के रूप में उपयोग किया। राजा राम मोहन राय ने ‘संवाद कौमुदी’ नामक एक बंगाली अखबार निकाला, जिसमें सामाजिक मुद्दों, धार्मिक कुरीतियों और अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई गई। इसके अलावा, उन्होंने अंग्रेजी में ‘मिरर ऑफ बंगाल’ नामक अखबार भी प्रकाशित किया। उनकी पत्रकारिता ने समाज में जागरूकता लाने और लोगों को सामाजिक सुधार के प्रति प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा राम मोहन राय ने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए भी संघर्ष किया और अंग्रेजों की नीतियों का विरोध किया, जो प्रेस पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। उनका यह योगदान भारतीय पत्रकारिता को स्वतंत्रता और सत्य की ओर ले जाने में सहायक बना।

उनकी विरासत

राजा राम मोहन राय के योगदान से भारतीय समाज में एक नई चेतना और जागरूकता का संचार हुआ। उन्होंने न केवल सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया बल्कि एक प्रगतिशील समाज की नींव रखी। समाज सुधार, शिक्षा, धार्मिक सहिष्णुता और प्रेस स्वतंत्रता के क्षेत्र में उनके कार्यों का प्रभाव आज भी भारतीय समाज में देखा जा सकता है। उन्हें आधुनिक भारत का जनक इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके विचारों और प्रयासों ने भारत को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी विरासत आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। राजा राम मोहन राय का जीवन हमें यह सिखाता है कि समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष और समर्पण आवश्यक हैं। उनके द्वारा स्थापित मूल्य हमें समाज को समानता, स्वतंत्रता और शिक्षा के आधार पर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

राजा राम मोहन राय का जीवन और कार्य भारतीय समाज में सुधार लाने का प्रतीक हैं। उनके द्वारा किए गए समाज सुधार कार्यों का प्रभाव आज के समाज पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके विचार और आदर्श हमें समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देते हैं। राजा राम मोहन राय का योगदान भारत के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।

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